जीवन समय मे कैद एक यात्रा है, कुछ पलों के अतिरिक्त जो स्वतंत्र होते है।
समय को समझने के लिये सिद्धांतो की गहराई मे जाने से पहले हम समय से संबधित कुछ गलतफहमीयों को दूर करना होगा। ये गलतफहमीयाँ मुख्यतः समय के प्रवाह से उत्पन्न है तथा काल-अंतराल मे द्रव्यमान द्वारा उत्पन्न वक्रता को सही रूप से नही समझ पाने से उत्पन्न है।
ब्लाक ब्रह्मांड
ब्लाक ब्रह्माण्ड के परिपेक्ष्य मे समय एक भूदृश्य(landscpae) के समान है, जिसमे भूतकाल, वर्तमान और भविष्यकाल तीनो एक साथ भिन्न आयामो मे मौजूद हैं। इसका अर्थ है कि डायनासोर अभी भी है, साथ ही आपकी अपनी बहुत सी प्रतिलिपीयाँ है तथा सारा ब्रह्मांड भी भविष्यकाल और भूतकाल की विभिन्न अवस्थाओं मे उपस्थित है।
यह विचित्र चित्र आइंस्टाइन के साधारण सापेक्षतावाद(Theory of relativity) के सिद्धांत से उत्पन्न होता है जिसमे समय एक एक चतुर्थ आयाम(fourth dimension) है और उसकी दिशा भूतकाल से भविष्य काल की ओर है। साधारण सापेक्षतावाद मे दो घटनायें(Events) एक साथ एक ही समय मे नही हो सकती है, इससे एन्ड्रोमीडा विरोधाभास(Andromeda paradox) जैसी विसंगतियां उत्पन्न होती है।
हमारे जैसे व्यक्ति जो भौतिकशास्त्र मे विश्वास करते है भूतकाल, वर्तमान तथा भविष्यकाल मे अंतर जानते है, उन्हे ज्ञात है कि यह एक जिद्दी स्थायी भ्रम है। –अलबर्ट आइंस्टाइन
सापेक्षतावाद सिद्धांत के काल अंतराल मे वक्रता को “उच्च आयाम मे आयी एक ऐसी वक्रता” के रूप मे माना जा सकता है जहां समय धीमा हो और समय एक भिन्न आयाम ना हो। इसे इस तथ्य से प्रमाणित भी किया जा सकता है जिसमे गति करते पिंड अपने साथ फोटानो को खींच कर समकालीनता(Simultaneity)* का संरक्षण करते है। इस व्यवहार को गतिशील प्लाज्मा मे फोटान त्वरण ( photon acceleration caused by moving plasmas)से सिद्ध भी किया जा चुका है।
समकालीनता
साथ दिये चित्र मे समकालीनता से संबधित एक वैचारिक प्रयोग को दर्शाया गया है। एक अंतरिक्षयान अत्यंत तीव्र गति से बायें से दायें दिशा मे गतिमान है। सापेक्षतावाद के नियम के अनुसार प्रकाशगति यान के अंदर निरीक्षक तथा यान से बाहर स्थिर निरीक्षक के लिये समान होगी।
यान के सामने तथा पीछे से उत्सर्जित प्रकाश किरणे यान के अंदर वाले निरीक्षक के लिये यान के मध्य मे मिलेंगी। लेकिन यान बाह्य स्थिर निरीक्षक के लिये वे यान के पिछले भाग की ओर मिलेंगी।
इस जानकारी के प्रयोग से एक वैचारिक प्रयोग(thought experiment) किया जा सकता है जिसमे प्रकाश किरणो के यान के मध्य मे ना मिलने पर यान के मध्य एक बिल्ली को बंदूक से गोली मार दी जायेगी।
इसका अर्थ यह होगा कि यान के अंदर स्थित निरीक्षक के लिये बिल्ली जीवित होगी, लेकिन यान बाह्य स्थिर निरीक्षक के लिये बिल्ली मृत क्योंकि उसके अनुसार प्रकाश किरणे मध्य मे नही मीली हैं।
अब कौन सा निरीक्षक सही है ? बिल्ली जीवित है या मृत ? इस प्रश्न को सुलझाने का एक तरीका यह है कि यह मान कर चला जाये कि बंदूक दागने की प्रणाली गतिशील यान के नियमों का पालन करेगी। अर्थात बिल्ली जीवित है। इसका अर्थ यह भी है कि यान बाह्य स्थिर निरीक्षक के निरीक्षण निरर्थक हैं। इस घटना को भी इस तथ्य से प्रमाणित भी किया जा सकता है जिसमे गति करते पिंड अपने साथ फोटानो को खींच कर समकालीनता* का संरक्षण करते है और इस व्यवहार को गतिशील प्लाज्मा मे फोटान त्वरण से सिद्ध भी किया जा चुका है। अर्थात ब्रह्माण्ड को किसी खांचे की आवश्यकता नही है।
अगले लेखों मे हम देखेंगे कि समय अंतर के निर्माण से गतिशील पिंड किस तरह से अंतराल मे वक्रता उत्पन्न करते है। द्रव्यमान रहित कण(शून्य द्रव्यमान) समय अंतर मे गति की दिशा मे खिंचे जाते है, जिससे उस पिंड मे स्थित निरीक्षक द्वारा किया गया निरीक्षण ही अर्थपूर्ण होता है।
ब्लाक ब्रह्मांड की समस्याएं
समय के अपरिवर्ती सिद्धांत(static theory of time) से कुछ समस्यायें और विरोधाभाष उत्पन्न होते है जिनका विश्लेषण आवश्यक है। इस सिद्धांत मे समय भूदृश्य के ही जैसे समय-पटल मे पसरा हुआ है। इसके अनुसार भविष्य का आस्तित्व है और इसके अनुसार स्वतंत्र इच्छा/घटना का आस्तित्व संभव नही है। एक छोटे से समय के अंतराल मे भी पूरे ब्रह्माण्ड की हर वस्तु की असंख्य प्रतिलिपीयाँ होना चाहीये।
इस ब्लाक ब्रह्माण्ड मे ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति(Origin of Universe) की चर्चा व्यर्थ है क्योंकि ब्रह्माण्ड के हर भाग का आस्तित्व हमेशा ही रहा है। यदि कोई महाविस्फोट(Big Bang) हुआ है तब उसका आस्तित्व अभी भी होगा। यदि समयपटल(time-scape) का आस्तित्व है जिसमे भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्य फैले हुये है, तब हमे घटनाये घटित होते हुये और समय का प्रवाह कैसे महसूस होता है ? क्या हमारी चेतना(consciousness ) समय के प्रवाह मे बहती रहती है ? हमारी चेतना को इस प्रवाह मे गतिमान कौन बनाता है ? हम अपनी इच्छा से समय के प्रवाह मे स्वतंत्र रूप से क्यो आगे पिछे नही जा सकते है ? समय के प्रवाह मे चेतना की गति को समझने हमे एक नयी भौतिकी की आवश्यकता होगी।
“ब्लाक ब्रह्मांड” क्षद्म वैज्ञानिको(pseudo science) के लिये एक वरदान बन कर आया है। यह उन्हे भविष्य के अनुमान, ज्योतिष, स्वप्न जैसी चीजों की अपनी मर्जी से व्याख्या के लिये एक अवसर प्रदान करता है। इसी तरह के कुछ आइडीये क्वांटम भौतिकी के कुछ कारको की प्रकृति द्वारा विशिष्ट रूप से चयन की गयी राशि पर भी लगाये जाते है, क्वांटम भौतिकी के इन कारको की राशि यदि कुछ और हो तो ब्रह्माण्ड का आस्तित्व संभव नही है। हम एक ही ब्रह्माण्ड को समझने मे असमर्थ है, यदि अरबो व्यक्तियों द्वारा अरबो विकल्पो के चयन के द्वारा खरबो ब्रह्माण्ड के अस्तित्व की संभावना किसी को भी मानसिक रूप से अंसंतुलित करने के लिये पर्याप्त है। ऐसा इसलिये कि हर संभावना एक समांतर ब्रह्माण्ड को जन्म देती है, एक सिक्का उछालने पर दो समांतर ब्रह्माण्ड बन जाते है, एक मे सिक्का चीत होगा दूसरे मे पट!
समय यात्रीयों का अभाव
यदि ब्लाक ब्रह्माण्ड का आस्तित्व है, तब भविष्य की उन्नत सभ्यताओं का आस्तित्व भी होगा जोकि हमसे तकनीक मे लाखों अरबो वर्ष आगे होंगी। इनमे से कम से कम कुछ सभ्यतायें समय यात्रा मे सक्षम होना चाहीये। इन समय यात्राओं के कुछ प्रमाण भी होना चाहीये या समय यात्रा किसी अज्ञात भौतिकी के नियमो के अनुसार अंसभव होना चाहीये।
यदि समय यात्रा संभव है ,तब कोई व्यक्ति भूतकाल मे जाकर अपने दादा की उनके विवाह से पहले हत्या कर सकता है, इस तरह से वह भविष्य मे परिवर्तन कर अपने आप को भी पैदा होने से रोक देता है। जब वह पैदा नही हुआ तो वह समय यात्रा कर भूतकाल मे कैसे पहुंचेगा ?
सक्षेंप
समय एक वास्तविक अद्भुत घटना है तथा वह कुछ तरह से किसी ब्लाक ब्रह्माण्ड के जैसे समयपटल पर पसरी प्रतित होती है लेकिन उसका ब्लाक ब्रह्माण्ड के जैसे प्रतित होना एक भ्रम मात्र है। केवल वर्तमान वास्तविक है, भूतकाल स्मृति है तथा भविष्य का आस्तित्व नही है। समकालीनता का संरक्षण होता है तथा प्लाज्मा की गति द्वारा फोटान त्वरण से प्रमाणित है। समय यात्रीयों के अनुपस्थिति तथा समय यात्रा से जुड़े विरोधाभाषो के फलस्वरूप ब्लाक ब्रह्माण्ड की अवधारणा संभव नही है।
हमारा वर्तमान इतना छोटा होता है कि उसे किसी इकाई मे मापना संभव नही है। वर्तमान की तुलना किसी सीडी रीकार्डीग यंत्र की तीव्र सुई से की जा सकती है। भूतकाल और भविष्य का मापन संभव है, जैसे हम किसी टेप या सीडी की स्मृति का मापन कर सकते है। भूतकाल के लिए इस स्मृति मे आंकड़े होंगे, वही भविष्य के लिये वह कोरे कागज के जैसे खाली होगी। इसका अर्थ यह नही है कि समय का आस्तित्व नही है, यह सिर्फ यह दर्शाता है कि जिसे हम समय समझते है वह एक आभास या भ्रम मात्र है।
*समकालीनता(Simultaneity ): यह किसी एक ही पर्यवेक्षक के संदर्भ मे समान समय मे घटित होने वाली घटनाओं का गुणधर्म है।
अगले अंक मे समय गुरुत्व के प्रभाव मे धीमा क्यों हो जाता है ?
संभावनाओ से नए ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति…!!! ये समान्तर ब्रह्माण्ड हमें पागल करके ही छोड़ेगा…
Yahi Pagal Pan Hame Kuch Naya Karne Ka Jazba Deta hai….. Anmol
time space theory samikarno ke sath hindi ebook bhi ho to achchha ho,dhanyawad.
अपनी समझ से बिलकुल बाहर ?
इसके लिए माफ़ी …..मगर “अलबर्ट आइंस्टाइन” जी की इसी खोज पर मैंने Discovery / Nat geo. पर भी कई प्रोग्राम देखे ,जिस शारीर को पिछले किसी भी समय [काल /वर्ष] में हम जला चुके है फिर उसकी हत्या कैसे की जा सकती है समय की यात्रा द्वारा ,{विज्ञान जो भी खोजता है हमारे पूर्वजो [ऋषियों] की खोज क़े बराबर भी नहीं पहुँचता ,
क्या आप सहमत है हमारी इस धरोहर क़े साथ ?
ये कभी तो कबूल करेंगे की होता है सूक्ष्म शारीर भी जिसे हम ” आत्मा ” क़े नाम से जानते है ,
मनोज जी,आपसे मैं सहमत नहीं ! आत्मा पर मुझे विश्वास नहीं है! समय को समझने में समय तो लगता है।
jaha tak mera khyal hai..hum past dekh sakte hai usme jaa nahi sakte ..ye ek aabhashi ghatna. Hai. 🙂
बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी सर जी
जय हो ! प्रयास को नमन !
समझ सकता हूँ कितनी मेहनत का काम है।
बी॰ ऍससी॰ में याद नहीं किस प्रसंग में हाइपोथैटिकल थ्योरी आती थी पिता, पुत्र और ब्रह्माण्ड के सम्बन्ध में जिसमें पिता पुत्र से छोटी आयु का रह जाने की बात थी।
samay balwaan hai….humari umar samy se judi hai…
ye ek adhbhut jaankaari hai ….ese samjne mai samy lage gaa….
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श्री मान जी,
मुझे “ब्लाक ब्रह्माण्ड की समस्याएँ” पर लिखी आप की पंक्तियें यथार्थ मालूम होती है। जिस पर विज्ञान के कार्य स्पष्ट देखे जा सकते हैं। आप का कार्य भी सराहनीय है। मुझे समकालीनता पर की गई सभी बातें समझ में नहीं आई। मैं आप से समकालीनता को समझने में सहयोग चाहता हूँ।
मुझे ऐसा लगता है आप के द्वारा वैचारिक प्रयोग में कुछ पंक्तियों के बल पर ही समझाने की कोशिश की गई है। जिस वैचारिक प्रयोग के चित्रण के लिए आपने जिन पंक्तियों का प्रयोग किया है। वह चित्रण मेरे मन में तो नहीं बनता। तथा कुछ जगहों पर सहयोगी शब्दों(में, की आदि) की कमी मालूम पड़ती है। कृपया मुझे समकालीनता के बारे में विस्तृत जानकारी दें..
धन्यवाद..
जरा सोचिये अगर हमारे मस्तिष्क में मेमोरी नामक व्यवस्था नहीं होती तो हम समय के बारे में क्या ये सब बाते कर सकते थे , चकरा गए ना ? क्या समय की अवधारणा केवल हमरे मस्तिस्क के कार्यप्रणाली का एक विशेष प्रोसेस मात्र है ” please reply and discuss
गोविन्द पुरोहित जी, ऐसा नहीं है। क्योंकि दिल, दिमाग(मस्तिष्क) और मन तीनो अलग-अलग चीज हैं। आप मन की कार्य प्रणाली को ध्यान में रखते हुए, दिमाग के बारे में बात कर रहे हैं। जबकि आप अवधारणाओं के बारे में बात कर रहे हैं तब उसके विचार में मन की कार्य प्रणाली उपयोगी होती है। तथा उस अवधारणा के लिए वार्तालाप करने में दिमाग की कार्य प्रणाली उपयोगी होती है। जिसके बारे में विचार पहले से ही किया जा चुका है। मेरे कहने का मतलब मन के उपयोग से। और उस अवधारणा पर चर्चा बाकीं है दिमाग के उपयोग से..
दिल शरीर का आधार, दिमाग शरीर का मूल और शरीर या कहें मन बस यूँ ही है। मन का अर्थ अपने आप को उस स्थिति में ले जाना होता है। जहाँ पर जाकर शरीर परिक्षण या अध्ययन कर सकता है। पर जरुरी नहीं है कि शरीर वहाँ कभी पहुँच भी पाए। इस लिए मैंने मन को शरीर भी कहा है।
आइये एक वैचारिक प्रयोग करते हैं। माना हमने कभी ब्रह्माण्ड के मूलभूत अवयव की ख़ोज कर ली। तब यह सोचिये कि उनमे यह गुण कहाँ से आए। कहने का मतलब मैं खाना खाता हूँ पर मेरा मुंह नहीं। और जबकि हमने ब्रह्माण्ड के मूलभूत अवयव खोजे हैं। तो उनमे गुणधर्म होने का सवाल ही नहीं होता है। तो उनसे निर्मित पदार्थ या कहें हममें ये गुण कैसे..???
वो ऐसे कि हम उन मूलभूत अवयव में गुणधर्म होने का कारण, मन अर्थात अवधारणा से जान सकते हैं।
दूसरी बात दिमाग अर्थात मूल की… आप अपने दाएं हाथ में चिमेटिये। जिससे की आप को दर्द का अनुभव होगा। यह दर्द पूरे दाएं हाथ में तो हो सकता है। पर बाएँ हाथ में कभी नहीं हो सकता। दिमाग को एक आयामिक प्रक्रिया कह सकते हैं।
तीसरी बात दिल अर्थात आधार की.. कहते हैं जब बैचेनी होती है। तो समझ लो दिल सम्बन्धी घटना घटी है। जो पूरे शरीर को प्रभावित कर देती है। इसे आप शुन्य आयामिक प्रक्रिया कह सकते हैं।
प्रिय मित्र , मेरा तर्क समय के विमाओ , समय की दिशा , और समय के अन्य परिकल्पनाओ के मूल में छिपे उस तथ्य की ओर इशारा करता है जो हमारी चेतना ओर घ्यानेंद्रियो की सीमाओ एवं क्रियाविधि से सीधा सम्बन्ध रखता है . में ये कहना चाहता हु की यदि हमारे दिमाग अथवा मन अथवा चेतना में किसी चीज को याद रखने की क्षमता नहीं होती तो हम समय के बारे में क्या सोचते जाहिर से बात है की हम किसी भी बात को याद नहीं कर सकते और ऐसे में भूतकाल नाम की कोई चीज़ नहीं होती अर्थात समय की अवधारानाओ का या अन्य कई भोतिक परिकल्पनाओ एवं सिधान्तो का हमारी चेतना से सीधा सम्बन्ध है.क्या आप मेरा मंतव्य समझ पाए ?
श्री मान जी, हो सकता है। मैं, आप की बात को नहीं समझ पा रहा हूँ। संवाद के दौरान हो सका तो समझ सकूँ।
यदि आप यह कहना चाहते हैं। कि किसी विषय, वस्तु या कल्पना को जानने में समय लगता है। जो की स्वाभाविक है। और उस जानकारी में मस्तिष्क अपनी भागीदारी देता है। यदि वह ना देता तो..?? फिर मैं यह कह सकता हूँ कि आपका सोचना सार्थक है। क्योंकि प्रश्न पूंछने के तरीकों के वर्गीकरण से पता चलता है। कि क्यों, ऐसा ही क्यों, कैसे, कब, ऐसे कैसे से सम्बंधित प्रश्नों का सम्बन्ध अवस्थाओं से होता है। जिसको वर्तमान, भूतकाल अथवा भविष्यकाल के आधार पर ही ज्ञात किया जाता है।
फिर भी मैं यही कहूँगा। कि यदि आप मस्तिष्क में ज्ञान संग्रहित करने का सम्बन्ध कल्पना करने या अवधारणा से करते हैं। तो ऐसा कहना सही नहीं होगा। जैसे उम्मीद एक से अधिक बार पूरी की जाती है। तब वह विश्वास बन जाती है। पर पहली उम्मीद को विश्वास कहना अनुचित होगा। अब यहाँ ध्यान देने वाली बात… यदि मेरे पास उम्मीद के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है। तब मेरे लिए वह उम्मीद ही विश्वास के रूप में सामने आती है। तब यह अवधारणा बन जाती है। अब आप बताइए कि इसमें समय की अवस्था का किसी भी प्रकार से उपयोग नहीं हुआ है। तब मैं कैसे कह दूँ कि इस प्रक्रिया में मस्तिष्क की संग्रहित करने की भूमिका रही.. कैसे कह दूँ कि हमने भूतकाल का उपयोग किया..
यह परिकल्पना मेरे मन में उस स्थिति पर आई थी। जब मैंने सोचा था कि आदिमानव में मस्तिष्क का विकास कैसे हुआ..?? समय की सबसे छोटी इकाई क्या होगी..?? जो ब्रह्माण्ड के निर्माण या परिवर्तन में क्रियाशील हुई होगी या हो रही है..?? यदि हम विषय पर, अवधारणाओं पर चर्चा करते हैं। या उसको सत्यापित करके सिद्धांत या नियम का दर्जा देते हैं। तो अवश्य ही मस्तिष्क का उपयोग ज्ञान अर्थात आधार को संग्रहित करने में (समय के रूप में) किया जाता है।
मित्र , मेरा प्रयास आपको एक परिकल्पना के माध्यम से ये एहसास करवाना था की यदि प्रकृति ने हमें अर्थात हमारी चेतना को किसी घटना को याद रखने की शक्ति गुण नहीं दिया होता . ये इस तरह से है की जैसा हम गंणित में करते है की माना की पेड़ की ऊंचाई x है ” – तो मेरे मित्र इस अवस्था में जब की हम किसी घटना को याद नहीं रख पाएंगे तो हमारे लिए भूतकाल का अस्तित्व ही नहीं होगा . हम सिर्फ वर्तमान को ही महसूस कर पाएंगे .तो मेरे कहने का मतलब है की क्या उस परिकल्पित अवस्था में हमारे सिधांत जो हमने समय ,सापेक्षता व अन्तराल के लिए बनाये है जरुर कुछ अलग होते उसमे भूतकाल जैसी कोई अवधारणा ही नहीं होती तो क्या भोतिकी के सारे सिधांत मूलतः हमारी चेतना पर ही सीधे निर्भर करते है ? अर्थात जो समय की आभासी नकारात्मक दिशा जो भूतकाल को प्रदर्शित करती है वो वास्तव में केवल हमारे मस्तिस्क और चेतना का बुना जाल है यथार्त नहीं |और इसीलिए जब हम समय से सम्बंधित किसी भी शोध के अंत में जाते है तो यही पाते है की भूतकाल में जाना संभव नहीं , यदि है तो केवल आभासी उपस्थिति मात्र घटनाओ को प्रभावित किये बिना |ये तो यही सिद्ध करती है की हम घूम कर वापस चेतना ,मस्तिष्क एवं एहसास पर ही आ गए .
अब से मेरी ज्ञान संग्रहित करने की क्षमता नहीं रही। ठीक..
अब आपने मुझ से पूंछा कि हम कहाँ पर खड़े हैं..?? मैं उत्तर देने के पहले ही प्रश्न भूल गया।
कुछ समय पश्चात् मैंने आपसे कुछ कहा..। फिर किसी अन्य विषय पर कहने लगा..। पर आप मुझ से न ही रुष्ट हो सकते हैं, और ना ही मुझे पागल कह सकते हैं। क्योंकि आप भी भूल गए कि मैंने पहली बार में क्या कहा था..?? हा हा हा..
देखा, आपके प्रश्न का उत्तर भी उसी तरह कैसे मिलता है..। श्रीमान जी, मैं आपको बताना चाहूँगा, कि प्रश्न अपने साथ कुछ शर्तों को लेकर चलता है। जहाँ उसका उत्तर उन शर्तों को सिर्फ पूरा ही करता है। दरअसल आप जो सुनना चाहते हैं, वो आपके प्रश्न के उत्तर के रूप में कभी प्राप्त नहीं हो सकता।
प्रश्न के उत्तर के बारे में, मैं इतना ही कहना चाहूँगा। मस्तिष्क द्वारा ज्ञान संग्रहित करने की क्षमता नहीं होने पर.. आप किसी से भी अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं कर पाते। इसका मतलब ये नहीं, कि हम लोग दुखी रहते। बल्कि भावनाओं की अनुपस्थिति से खुश रहते। हमें सिद्धांत, नियम, अवयव, कण, और प्रकृति आदि को जानने की आवश्यकता ही नहीं होती। तो प्रश्न ही नहीं होते.. और जबाब भी नहीं दिए जाते… हा हा हा..
हमेशा याद रखियेगा… “प्रश्न अपने साथ कुछ शर्तों को लेकर चलता है। जहाँ उसका उत्तर उन शर्तों को सिर्फ पूरा ही करता है।”
आधारभूत जी आपने गजनी देखि है न शोर्ट टर्म मेमोरी वाली . ये शोर्ट टर्म अगर ० हो जाये परिकल्पित अवस्था में तो जीवन असंभव नहीं हो जायेगा बल्कि उसी के अनुसार चलने लगेगा , हां ये अभी से बिलकुल अलग होगा पर ऐसा नहीं है की जीवन संभव ही ना हो . जब हम लगभग ११.२ की मी /सेकंड की गति को ही बमुशिकल सह सकते है तो हम प्रकाश के पास मतलब लगभग तीन लाख की मी/ सेकंड की गति के विषय में कैसे परिकल्पना कर लेते है . परिकल्पना के बिना विज्ञान में नई खोजे असंभव है .रही बात प्रश्न की तो वो तो फिर भी होते क्यूंकि जब भी भूख लगाती तो हम सोचते की क्या महसूस हो रहा है ? क्यों हो रहा है ” ? कैसे ये भूख मिटेगी ? हां ये जरुर होगा की हर बार भोजन के बारे में आप को वही सोचना होगा जो पिछली बार सोचा था या कुछ अलग या और ज्यादा क्योकि हम उस अनुभव को संरक्षित नहीं रख पाएंगे .लेकिन जीवन होगा प्रश्न होंगे और वैज्ञानिक खोजे भी होंगी संभव है की हम भी कुछ वैसे ही तरीके काम में ले जो गजनी ने लिए थे .और ये भी संभव है की आदिमानव ऐसी ही स्थितिओ से गुजरा हो और फिर इस समस्या के समाधान को विकास के द्वारा विकसित किया गया हो .तो जरा मुख्या उद्देश्य पर जाइए की क्या तब किसी गति को देख कर आप सापेक्षता का सिधांत कैसे सोच पाएंगे या भूतकाल में समय यात्रा का. कुछ तो जरुर है सर जी , ये बेशक अजीबोगरीब लगे पर आप इसे विचार की जमीन पे रख तो सकते है .
पुरोहित जी, आपने शुरू की दो पंक्तियों में तो प्रकृति की ही व्याख्या कर दी। पर आगे चलकर आप डग-मगाने लगे। आपने कहा भूख लगती है तो… के बाद के दूसरे और तीसरे प्रश्न हो ही नहीं सकते थे। क्योंकि हमारे पास इस तरह के प्रश्न को पूंछने के लिए ज्ञान संग्रहित करने की क्षमता नहीं है। मैं आपके शब्दों को इस लिए पकड़ रहा हूँ। ताकि आप प्रश्न का सम्बन्ध, उस उत्तर से स्पष्ट रूप में समझ सकें। जिसे आप सुनना चाहते हैं। मैंने आपसे पहले भी कहा है। कि उस स्थिति में हम सिर्फ अवधारणा पर ही कार्य करते रहते। सिद्धांत, नियम और कण आदि से तो कोषों दूर रहते। हम कभी भी दिव्तियक प्रश्न कर ही नहीं पाते..
रही बात समय की अवधारणा की। तब भी हम समय की अवस्था के जरूर शिकार होते। पर इस रूप में नहीं.. बल्कि स्वयं की अवधारणा में परिवर्तन को पा कर.. यह परिवर्तन हमारी सोच के दायरे में नहीं आता। क्योंकि समय के साथ हम बहुत से प्रश्न खोते जाते हैं।
भौतिकी से मैंने समय के तीन रूप और उसकी तीन अवस्था को जाना है। इसका मतलब यह नहीं कि मैं समय के प्रकार के बारे में बात कर रहा हूँ। बल्कि समय के अलग-अलग स्थिति में प्रयोग होने को बता रहा हूँ। इसलिए मैं कह सकता हूँ कि आप किसी विशेष स्थिति से उत्पन्न प्रश्न का उत्तर अन्य स्थिति में ढुड़ना चाहते हैं।
रूप- इकाई रूप, ज्यामिति रूप और आयु रूप
अवस्था- भूतकाल, वर्तमान काल और भविष्य काल
mene back to the future movie dekhi h.usme bhi yhi h
very knowledge full information in word of space.
energy और आत्मा दोनों क्रमशः विज्ञानं और वेदों के मूल है तथा जो जगह उर्जा की विज्ञानं मे है वो ही जगह आत्मा की हमारे पूर्वज वेदों की है ,,,क्योंकि दोनों ही काल्पनिक है ,,,,प्रत्येक मस्तिष्क के लिए अपनी अलग दुनिया है
वेदों (गीता,कुरान etc.) ने पृथ्वी तक के सिद्दांतो से हमे संतुष्ट किया बाद मे विज्ञानं ने इसकी जगह ले ली इसने अन्तरिक्ष तक के सिद्दांतो से हमें संतुष्ट किया ,,,अब विज्ञानं की जगह कोई तब ही ले पायेगा जब वो अपने सिद्दांतो को विज्ञानं से भी विस्तृत करके हमें संतुष्ट करे ,,,,,मेरी आयु अभी 17 है ,,,मुझे वेद और विज्ञानं दोनों अपनी-अपनी निश्चित सीमओं तक संतुष्ट करते है ,,,,तो क्या ये विचारधारा गलत है कृपया मेरा मार्गदर्शन करें ..
kya guruwkarshan bal ( gravity ) ka prabhaw samay per padta hai….?
agar ha to univerc me na koi gravity power na koi bada pind jo sare pindo ko apni tarf khinch raha ho to waha samay kyo chalta hai.
agar nhi to kya samay ruk jane per univerce ka vistar ruk jaega…..
हां, आइंस्टाईन के सापेक्षतावाद के सिद्धांत के अनुसार गुरुत्वाकर्षण से समय धीमा हो जाता है। उदाहरण के लिये सूर्य का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी से ज्यादा है, इसलिये सूर्य पर समय पृथ्वी की तुलना मे धीमा होगा।
अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण वाले पिंड जैसे श्याम विवर (black Hole) मे समय लगभग रूक जाता है। ध्यान रहे कि समय कि गति श्याम विवर के पास धीमी हुयी है लेकिन उससे दूर जाने पर समय अपनी वास्तविकता गति पर आ जायेगा क्योंकि दूरी बढ़ने के साथ गुरुत्वाकर्षण कम होते जाता है।
समय रूक जाने पर सब कुछ रूक जायेगा। पृथ्वी, तारे ब्रह्माण्ड सब कुछ!
हमारी भौतिकी से परे भी कई सिधानत है
भौतिकी से परे कोई सिद्धांत नही है, प्रकृति भौतिकी के नियमों से संचालित है। यह और बात है कि हमारी जानकारी सीमित है, भौतिकी के कई नियम और कई रहस्य हम नही जानते हैं। यह भौतिकी की सीमा नही, हमारी अपनी सीमा है।
सर्व प्रथम तो आशीष ji आपको धन्यवाद,परन्तु समय के विभिन्न पहलुओ को भोतिक विज्ञानं से नहीं समझा जा सकता