कुछ लोगो का विश्वास है कि परग्रही प्राणी उड़नतश्तरीयो से पृथ्वी की यात्रा कर चूके है। वैज्ञानिक सामान्यतः उड़नतश्तरी के समाचारो पर विश्वास नही करते है और तारो के मध्य की विशाल दूरी के कारण इसकी संभावना को रद्द कर देते है। वैज्ञानिको इस ठंडी प्रतिक्रिया के बावजूद उड़नतश्तरी दिखने के समाचार कम नही हुये है।
उड़नतश्तरीयो के देखे जाने के दावे लिखित इतिहास की शुरुवात तक जाते है। बाईबल मे ईश्वर के दूत इजेकील ने रहस्यमय ढंग से आकाश मे ’चक्र के अंदर चक्र’ का उल्लेख किया है जिसे कुछ लोग उड़नतश्तरी मानते है। १४५० ईसा पूर्व मिश्र के फराओ टूटमोस तृतिय के काल मे मिश्री(इजिप्त) इतिहासकारो ने आकाश मे ५ मीटर आकार के ’आग के वृत’ का उल्लेख किया है जो सूर्य से ज्यादा चमकदार थे और काफी दिनो तक आकाश मे दिखायी देते रहे तथा अंत मे आकाश मे चले गये। ईसापूर्व ९१ मे रोमन लेखक जूलियस आब्सक्युन्स ने एक ग्लोब के जैसे गोलाकार पिंड के बारे मे लिखा है आकाशमार्ग से गया था। १२३४ मे जनरल योरीतसुमे और उसकी सेना ने क्योटो जापान के आकाश मे रोशनी के गोलो को आकाश मे देखा था। १५५६ मे नुरेमबर्ग जर्मनी मे आकाश मे किसी युद्ध के जैसे बहुत सारे विचित्र पिंडो को देखा था।
हाल की मे स.रा. अमरीका की वायू सेना ने उड़नतश्तरीयो के देखे जाने की घटनाओ की जांच करवायी थी। १९५२ मे ब्लू बूक प्रोजेक्ट के अंतर्गत १२,६१८ घटनाओ की जांच की गयी। इस जांच के निष्कर्षो के अनुसार उड़नतश्तरीयो को देखे जाने की अधिकतर घटनाये प्राकृतिक घटना, साधारण वायुयान या अफवाहें थी। फिर भी ६ प्रतिशत घटनाये ऐसी थी जिन्हे समझ पाना कठिन था। लेकिन कन्डोन रिपोर्ट के निष्कर्षो के अनुसार ऐसे किसी अध्यन का कोई मूल्य ना होने से १९६९ मे प्रोजेक्ट ब्लू बुक को बंद कर दिया गया। यह अमरीकी वायू सेना का उड़नतश्तरीयो के अध्यन का अंतिम ज्ञात शोध अभियान था।
२००७ मे फ्रांस की सरकार ने उडनतश्तरीयो की जांच की एक बड़ी फाईल साधारण जनता के लिये उपलब्ध करायी। इस रिपोर्ट को फ्रांस के राष्ट्रिय अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र ने इंटरनेट पर उपलब्ध करा दिया है। इसके अनुसार पिछले पचास वर्षो मे १६०० उड़नतश्तरीया देखी गयी है. १००,०० पृष्ठ के चश्मदीद गवाहो के बयान, चित्र और ध्वनी टेप लिये गये है। फ्रांस सरकार के अनुसार ९ प्रतिशत घटनाओ को समझा जा सका है, ३३ प्रतिशत के पिछे संभावित कारण हो सकते है लेकिन बाकी घटनाओ के लीये कोई व्याख्या नही है।
इन घटनाओ की स्वतंत्र रूप से जांच संभव नही है। लेकिन तथ्यात्मक रूप से सावधानीपूर्वक अध्यन से अधिकतर उड़नतश्तरी की घटनाओ को निम्नलिखित कारणो मे से किसी एक के कारण माना जा सकता है:
- १. शुक्र ग्रह: जो चन्द्रमा के बाद रात्री आकाश मे सबसे चमकदार पिंड है। पृथ्वी से अपनी विशाल दूरी के कारण यह ग्रह कार चालाक को उनका पिछा करता प्रतित होता है, जिससे ऐसा लगता है कि कोई यान आपके पिछे लगा हुआ है। यह कुछ उसी तरह है जिस तरह कारचालको चन्द्रमा उनका पिछा करते हुये प्रतीत होता है। हम दूरी को अपने आसपास की वस्तु के संदर्भ मे मापते है। शुक्र और चन्द्रमा आकाश मे काफी दूरी पर है और आकाश मे उनके संदर्भ के लिये कुछ नही है और वे हमारे आसपास की वस्तुओ के संदर्भ मे नही चलते है और हमे उनके हमारे पीछा करने का दृष्टीभ्रम होता है।
- २. दलदली गैस : दलदली क्षेत्र मे तापमान के परिवर्तन होने पर दलदल से उत्सर्जित गैस जमीन से कुछ उपर तैरती रहती है और यह गैस थोड़ी चमकदार भी होती है। गैस के छोटे टुकड़े बड़े टुकड़ो से टूटकर अलग होते है और ऐसा भ्रम होता है कि छोटे यान बड़े मातृ यान से अलग होकर जा रहे है।
- ३. उल्का : कुछ ही क्षणो मे रात्री आकाश के पार प्रकाश की चमकदार रेखाओ के रूप मे उल्का किसी प्राणी चालित यान का भ्रम उत्पन्न करती है। ये टूट भी जाती है जिससे भी ऐसा भ्रम होता है कि छोटे यान बड़े मातृ यान से अलग होकर जा रहे है।
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४. वातावरण की प्राकृतिक घटनाये : तड़ित युक्त तुफान और असाधारण वातावरण की घटनाये भी कभी कभी आकाश को असामान्य विचित्र रूप से प्रकाशित कर देती है जिनसे भी उड़नतश्तरीयो का भ्रम होता है। सेन्टीलीनीयल बादल भी उड़नतश्तरीयो के जैसे प्रतित होते है।
बीसवीं और इक्कीसवी सदी मे निम्नलिखित कारक भी उड़नतश्तरीयो का भ्रम उत्पन्न कर सकते है;
- १. राडार प्रतिध्वनी: राडार तरंगे पर्वतो से टकराकर प्रतिध्वनी उत्पन्न कर सकती है जिन्हे राडार निरिक्षक पकड़ सकता है। यह तरंगें जीगजैग करते हुये और अत्यधिक गति से राडार के परदे पर देखी जा सकती है क्योंकि ये प्रतिध्वनी है।
- २.मौसम और शोध के गुब्बारे : एक विवादित सैन्य दावे के अनुसार १९४७ की प्रसिद्ध रोसवेल न्युमेक्सीको की उड़नतश्तरी दूर्घटना एक मौसम के गुब्बारे की दूर्घटना थी। यह गुब्बारा एक गोपनिय प्रोझेक्ट मोगुल का गुब्बारा था जो आकाश मे परमाणु युद्ध की परिस्थितियों मे विकिरण को मापने का प्रयोग कर रहा था।
- ३. वायूयान : व्यावसायिक और सैन्य वायुयान भी कभी कभी उड़न तश्तरी मान लिये जाते है। यह प्रायोगिक सैन्य वायुयानो जैसे स्टील्थ बमवर्षक यानो के मामलो मे ज्यादा होता है। अमरीकी वायूसेना ने अपने गोपनीय प्रोजेक्टो को पर्दे मे रखने के लिये उड़न तश्तरी देखे जाने की कहानियो को बढा़वा भी दिया था।
- ४. जानबुझकर फैलायी गयी अपवाह :
उड़नतश्तरीयो के कुछ प्रसिद्ध चित्र अपवाह है। एक प्रसिद्ध उड़नतश्तरी का चित्र जिसमे खिड़कीया और लैण्ड करने के पैर दिखायी दे रहे है एक मुर्गी को दाना देने वाली मशीन का था।
कम से कम ९५ प्रतिशत उड़नतश्तरीयो की घटनाओ को उपर दिये गये कारणो मे से किसी एक के कारण रद्द किया जा सकता है। लेकिन कुछ प्रतिशत घटनाओ की कोई संतोषजनक व्याख्या नही है। उड़नतश्तरीयो की विश्वासपात्र घटनाओ के लिये आवश्यक है :
- अ) किसी स्वतंत्र विश्वासपात्र चश्मदीद गवाह द्वारा एकाधिक बार देखा जाना
- ब)एकाधिक श्रोतो के प्रमाण जैसे आंखो और राडार द्वारा उडन तश्तरी की देखा जाना।
ऐसी रिपोर्टो को रद्द करना कठीन होता है क्योंकि इनमे कई स्वतंत्र जांच शामिल होती है। उदाहरण के लिये १९८६ मे अलास्का पर जापान एअरलाईन्स की उड़ान JAL १६२८ द्वारा उड़नतश्तरी का देखा जाना है जिसकी जांच FAA ने की थी। इस उड़नतश्तरी को इस उड़ान के यात्रीयो के अतिरिक्त जमीन के राडार से भी देखा गया था। इसीतरह १९८९-९० मे नाटो के राडारो और जेट इन्टरसेप्टरो द्वारा बेल्जीयम के उपर काले त्रिभूजो को देखा गया था। सी आई ए के दस्तावेजो के अनुसार १९७६ मे इरान के तेहरान के उपर उड़नतश्तरी को देखा गया था जिसमे एक जेट इन्टरसेप्टर एफ ४ के उपकरण खराब हो गये थे।
वैज्ञानिको के लिये सबसे निराशाजनक बात यह है कि उड़नतश्तरियो को देखे जाने की हजारो घटनाओ के बावजूद किसी भी घटना ने एक भी ऐसा सबूत नही छोड़ा है जिसकी किसी प्रयोगशाला मे जांच की जा सके। कोई परग्रही डी एन ए, कोई परग्रही कम्प्युटर चिप या किसी उड़नतश्तरी के उतरने का भौतिक प्रमाण आज तक प्राप्त नही हुआ है।
चश्मदीद गवाहों के बयानो पर आधारित उड़नतश्तरीयों के गुण
यह मानते हुये कि उड़नतश्तरीयां भ्रम ना होकर वास्तविक यान है; हम कुछ ऐसे प्रशन कर सकते है जिससे यह पता चले कि यह किस तरह के यान है। उड़नतश्तरीयो के चश्मदीद गवाहो के बयानो के आधार पर विज्ञानियों ने इनके निम्नलिखित गुण नोट कीये है:
- अ) वे हवा मे जीगजैग यात्रा करती है।
- ब) वे कार के इंजन को बंद करदेती है और यात्रा के मार्ग मे विद्युत उर्जा को प्रभावित करती है।
- क) वे हवा मे निशब्द तैरती है।
इनमे से कोई भी गुण पृथ्वी पर विकसीत किसी भी राकेट से नही मिलता है। उदाहरण के लिये सभी ज्ञात राकेट न्युटन के गति के तीसरे नियम(हर क्रिया की तुल्य किंतु विपरित प्रतिक्रिया होती है) पर निर्भर है; लेकिन किसी भी उड़नतश्तरी की घटना मे प्रणोदन प्रणाली का वर्णन नही है। परग्रही उड़नतश्तरी को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बाहर जाने के लिये प्रणोदन प्रणाली का होना अत्यावश्यक है। हमारे सभी अंतरिक्ष यानो मे प्रणोदन प्रणाली होती है।
उडनतश्तरीयो द्वारा वायू मे जीगजैग करते हुये उड़ान से उत्पन्न गुरुत्वबल जो पृथ्वी के गुरुत्व से सैकड़ो गुणा ज्यादा होगा, यह पृथ्वी के किसी भी प्राणी को पापड़ के जैसा चपटा कर देने के लिये काफी है।
क्या उड़नतश्तरीयो के ऐसे गुणो की आधुनिक विज्ञान द्वारा व्याख्या की जा सकती है ?
स्वचालित उड़नतश्तरियां या अर्धमशीनी चालक
हालीवुड की फिल्मे जैसे “अर्थ वर्सेस द फ्लाईंग सासर” यह मानती है कि उड़नतश्तरीया परग्रही प्राणियो द्वारा चालित होती है। लेकिन यह संभव है कि उड़नतश्तरीयां स्वचालित हो या इसके चालक अर्धमशीनी हो। स्वचालित यान या अर्धमशीनी चालक जीगजैग उड़ान से उत्पन्न गुरुत्व बल को झेल सकता है जो कि किसी प्राणी को कुचलने मे सक्षम है।
एक यान जो किसी कार के इंजन को बंद कर सकता है और वायु मे शांति से गति कर सकता है, चुंबकिय बल से चालित होना चाहिये। लेकिन चुंबकिय प्रणोदन के साथ समस्या यह है कि वह हमेशा दो ध्रुवो के साथ आता है, एक उत्तर ध्रुव और एक दक्षिण ध्रुव। कोई भी द्विध्रुवी चुंबक पृथ्वी पर उपर उड़ने की बजाये कम्पास की सुई के जैसे घुमते रह जायेगा क्योंकि पृथ्वी स्वंय एक चुंबक है। दक्षिणी ध्रुव एक दिशा मे गति करेगा जबकि उत्तरी ध्रुव विपरित दिशा मे, इससे चुंबक गोल घूमते रहेगा और कहीं नही जा पायेगा।
एकध्रुविय चुंबक
इस समस्या का समाधान एकध्रुवीय चुंबक का प्रयोग है, अर्थात ऐसा चुंबक जिसका एक ही ध्रुव हो, उत्तर ध्रुव या दक्षिण ध्रुव। सामान्यतः किसी चुंबक को आधे से तोड़ने पर दो एकध्रुव चुंबक नही बनते है, उसकी बजाय दोनो टूकड़े अपने अपने उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवो के साथ द्विध्रुवीय चुंबक बन जाते है। इसतरह आप किसी चुंबक को तोड़ते जाये, हर टूकड़ा अपने अपने उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों द्विध्रुवीय चुंबक ही रहेगा। ऐसा परमाण्विक स्तर तक पहुंचते तक जारी रहेगा जहां परमाणु स्वयं द्विध्रुवीय है।
विज्ञानियो के सामने समस्या है कि एकध्रुवीय चुंबक प्रयोगशाला मे कभी नही देखा गया है। भौतिकी विज्ञानियो ने अपने उपकरणो से एकध्रुवीय चुंबक के चित्र लेने के प्रयास किये है लेकिन असफल रहे है।(१९८२ मे स्टैनफोर्ड विश्व विद्यालय मे ली गयी एक अत्यंत विवादास्पद तस्वीर इसका अपवाद है।)
एकध्रुवी चुंबक को प्रयोगशाला मे नही देखा गया है लेकिन भौतिकी विज्ञानियो का मानना है कि ब्रह्माण्ड के जन्म के तुरंत पश्चात एकध्रुविय चुंबक की बहुतायत रही होगी। यह धारणा ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के महाविस्फोट(Big Bang) आधारित आधुनिक सिद्धांतो पर आधारित है, एकध्रुवीय चुंबक का घनत्व ब्रह्माण्ड के विस्तार के साथ कम होता गया है, और आज वे दूर्लभ हो गये है। तथ्य यह है कि एकध्रुवीय चुंबक का दूर्लभ होने ने ही विज्ञानियो को विस्तृत होते ब्रह्माण्ड के सिद्धांत के प्रतिपादन के लिये प्रोत्साहित किया है। इसलिये सैधांतिक रूप से एक ध्रुवीय चुंबक का आस्तित्व भौतिकी मे पहले से ही संभव है।
यह माना जा सकता है अंतरिक्ष यात्रा मे सक्षम परग्रही प्रजाति महाविस्फोट(Big Bang) के पश्चात शेष मौलिक एकध्रुवीय चुंबको को अंतरिक्ष मे एक बड़े चुंबकिय जाल से समेट कर अपने प्रयोग मे ला सकती है। जैसे ही उनके पास पर्याप्त एकध्रुव चुंबक जमा हो गये वे अंतरिक्ष मे फैली चुंबकीय रेखाओ पर सवार होकर बिना किसी प्रणोदन के यात्रा कर सकते है। एकध्रुवीय चुंबक भौतिकविज्ञानियो के आकर्षण का केन्द्र है और एक ध्रुवीय चुंबक आधारित यान विज्ञान की अभी तक ज्ञात अवधारणा के अनुरूप है।
नैनो टेक्नालाजी(नैनो अंतरिक्षयान)
ऐसी कोई भी परग्रही सभ्यता जो ब्रह्मांड मे कहीं भी अंतरिक्षयान भेज सकती है , नैनो टेक्नालाजी का ज्ञान अवश्य रखती होगी। इसका अर्थ यह है कि उनके अंतरिक्षयानो का विशालकाय होना आवश्यक नही है। नैनो अंतरिक्षयान लाखो की संख्या मे अंतरिक्ष मे ग्रहो पर जीवन की थाह लेने के लिये भेजे जा सकते है। ग्रहो के चन्द्रमा ऐसे नैनो अंतरिक्ष यानो के लिये आधारकेन्द्र हो सकते है। यदि ऐसा है तो भूतकाल मे वर्ग ३ की सभ्यता हमारे चन्द्रमा की यात्रा कर चूकी है। यह संभव है कि ये यान स्वचालित और रोबोटिक होंगे और चन्द्रमा पर आज भी होंगे। मानव सभ्यता को पूरे चन्द्रमा पर ऐसे नैनो अंतरिक्ष यानो के अवशेष या प्रमाण की खोज मे सक्षम होने मे अभी एक शताब्दी और लगेगी।
यदि हमारे चन्द्रमा की परग्रही सभ्यता यात्रा कर चूके है या वह उनके नैनो अंतरिक्ष यानो का आधारकेन्द्र रहा है तो कोई आश्चर्य नही कि उड़नतश्तरीयां विशालकाय नही होती है। कुछ विज्ञानी उड़नतश्तरीयो को इस लिये भी अफवाह मानते है क्योंकि वे किसी भी विशालकाय प्रणोदन प्रणाली के अभिकल्पन(Design) के अनुरूप नही है। उनके अनुसार ब्रह्मांडीय अंतरिक्ष यात्रा के लिये विशालकाय प्रणोदन प्रणाली आवश्यक है जिसमे रैमजेट संलयन इंजीन, विशालकाय लेजरचालित पाल तथा नाभिकिय पल्स इंजिन है जोकि कई किलोमीटर चौड़े हो सकते है। उड़नतश्तरीयां जेट विमान के जैसे छोटी नही हो सकती है। लेकिन यदि चन्द्रमा पर उनका आधार केन्द्र है तो वह छोटी हो सकती है और वे चन्द्रमा पर अपने आधारकेन्द्र से इंधन ले सकती है। उड़न तश्तरीयो को देखे जाने की घटनाये चन्द्रमा के आधारकेन्द्र से आ रहे स्वचालित प्राणी रहित यानो की हो सकती है।
ब्रह्माण्ड की विशालकाय दूरी
उड़नतश्तरीयों के विरोध मे सबसे बड़ा तर्क है कि ब्रह्मांड इतना विशाल है कि इसकी दूरीयों को पार कर उड़नतश्तरीयों का पृथ्वी तक आना लगभग असंभव है। पृथ्वी तक पहुंचने के लिए प्रकाश गति से भी तेज़ चलने वाला यान चाहिये जो कि मानव द्वारा ज्ञात भौतिकी के नियमों के विरूद्ध है। पृथ्वी के निकट का तारा भी ४ प्रकाशवर्ष दूर है, प्रकाशगति से चलने वाले यान को भी वहां से पृथ्वी तक आने मे ४ वर्ष लगेंगे। कुल यात्रा के कम से कम आठ वर्षो की यात्रा के लिए सक्षम यान को विशालकाय होना चाहिये। अब तक उड़नतश्तरीयो की जितनी भी रिपोर्ट मिली है उसमे उड़नतश्तरीयां विशालकाय नही हैं।
परग्रही जीवन और भविष्य
सेटी प्रोजेक्ट मे आयी तेजी और तेजी से खोजे जा रहे सौर बाह्य ग्रहो से ऐसा प्रतित होता है कि यदि हमारे समीप कहीं बुद्धिमान जीवन है तो एक शताब्दि के अंदर उनसे संपर्क स्थापित हो सकता है। कुछ प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है जैसे:
- यदि परग्रही सभ्यता का अस्तित्व है, क्या हम कभी उन तक पहुंच पायेंगे ?
- जब सूर्य की मृत्यु होगी हमारा भविष्य क्या होगा ?
- क्या हम किसी दूसरे तारे तक पहुंच मानव सभ्यता को बचा पायेंगे ?
- क्या हमारा भविष्य इन तारो मे ही निहीत है ?
इन सभी प्रश्नो का उत्तर भविष्य के गर्भ मे है।
यह परग्रही जीवन श्रंखला का अंतरिम लेख है, लेकिन भविष्य मे इसी विषय पर कुछ और लेख आ सकते है।
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भविष्य मे आने वाले इससे जूड़े कुछ और लेखो के विषय १.अंतरिक्ष यात्रा के लिये प्रणोदन प्रणाली (एक लेख या लेख श्रंखला ) २. क्या प्रकाशगति से तेज यात्रा संभव है ? कैसे ?(एक लेख या लेख श्रंखला )
हिंदी में इतनी विस्तृत वैज्ञानिक जानकारी देना बड़ी मेहनत का काम है. आपके श्रम के लिए आभार.
यू ऍफ़ ओज पर परिश्रम से लिखा एक समग्र लेख -मुझे लगता है उड़नतश्तरी का नामकरण त्याग कर हमें भी हिन्दी में यू ऍफ़ ओ ही स्वीकार कर लेना चाहिए !
काफी मेहनत की है आपने, बहुत अच्छा
Aapka shram saf jhalak raha hai, BADHAYI.
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पैरों तले जमीन खिसक जाए!
क्या इससे मर्दानगी कम हो जाती है ?
जिस तरह हमारी पृथ्वी पर जीवन है उसी तरह ब्रह्मांड के दूसरे ग्रहों में जीवन को नकारा नहीं जा सकता। लेकिन उड़न तश्तरी तो केवल UFO यानि unidentified flying object हैं सच नहीं हैं। वे केवल लोगों की कल्पना ही हैं।
apki mahnat ke liye bahut bahut Dhanywad!!!!!!
काफी अच्छा लिखा आपने तथा वैज्ञानिक तर्कों के साथ।
BADHAAI HO SIR,AAPNE ITNI ACHHI JAANKAARIYA SIRF JUTAAI HI NAHI BALKI UNHE HAMAARE LIYE UPLABDH BHI KARAAYA