पृथ्वी के बाहर जीवन की वैज्ञानिक खोज : परग्रही जीवन श्रंखला भाग २

अंतरिक्ष मे जीवन की खोज करने वाले विज्ञानीयो के अनुसार अंतरिक्ष मे जीवन के बारे मे कुछ भी निश्चित कह पाना कठीन है। हम ज्ञात भौतिकी, रसायन शास्त्र और जीव विज्ञान के नियमो के अनुसार कुछ अनुमान ही लगा सकते है।

अंतरिक्ष मे जीवन की खोज से पहले यह सुनिश्चित कर लेना आवश्यक है कि किसी ग्रह पर जीवन के लिये मूलभूत आवश्यकता क्या है? पृथ्वी पर जीवन और जीवन के विकास के अध्यन तथा ज्ञात भौतिकी, रसायन शास्त्र और जीव विज्ञान के नियमो के अनुसार अंतरिक्ष मे जीवन के लिये जो आवश्यक है उनमे से प्रमुख है:

  • द्रव जल,
  • कार्बन और
  • DNA जैसे स्वयं की प्रतिकृति बनाने वाले अणु।

वैज्ञानिको का मानना है कि जीवन के लिये द्रव जल की उपस्थिती अनिवार्य है। अंतरिक्ष मे जीवन की खोज के लिये पहले द्रव जल को खोजना होगा। द्रव जल अन्य द्रवो की तुलना मे सार्वभौमिक विलायक(Universal Solvent) है, जिसमे अनेको प्रकार के रसायन घूल जाते है। द्रव जल जटिल अणुओ के निर्माण के लिये आदर्श है। द्रव जल के अणु सामान्य है और ब्रम्हाण्ड मे हर जगह पाये जाते है जबकि बाकि विलायक दुर्लभ है।

हम जानते है कि जीवन के लिये कार्बन आवश्यक है क्योंकि इसकी संयोजकता(Valencies) चार है और यह चार अन्य अणुओ के साथ बंध कर असाधारण रूप से जटिल अणु बना सकता है। विशेषतः कार्बण अणु की श्रंखला बनाना आसान है जोकि हायड़्रोकार्बन और कार्बनीक रसायन का आधार है। चार संयोजकता वाले अन्य तत्व कार्बन के जैसे जटिक अणु नही बना पाते है।

 स्टेनली मीलर और हैराल्ड उरे द्वारा किया गया प्रयोग
स्टेनली मीलर और हैराल्ड उरे द्वारा किया गया प्रयोग

१९५३ मे स्टेनली मीलर और हैराल्ड उरे द्वारा किये गये प्रयोग ने यह सिद्ध कीया था कि सहज जीवन निर्माण यह कार्बनीक रसायन का प्राकृतिक उत्पाद है। उन्होने अमोनिया, मीथेन और कुछ अन्य रसायन (जो पृथ्वी की प्रारंभिक अवस्था मे थे) के घोल को एक फ्लास्क मे लीया और उसमे से विद्युतधारा प्रवाहित की और इंतजार करते रहे। एक सप्ताह मे ही उन्होने फ्लास्क मे अमीनो अम्ल (Amino Acid) को निर्मीत होते देखा। विद्युत धारा अमोनिया और मीथेन के कार्बन बंधनो को तोड़कर उन्हे अमीनो अम्ल मे बदलने मे सक्षम थी। अमीनो अम्ल प्रोटीन का प्राथमिक रूप है। इसके बाद मे अमीनो अम्ल को उल्काओ मे और गहन अंतरिक्ष के गैस के बादलो मे भी पाया गया है।

जीवन का मूलभूत आधार है स्वयं की प्रतिकृति बनाने वाले अणु जिन्हे हम डी एन ए कहते है। रसायन विज्ञान मे इस तरह के स्वयं की प्रतिकृति बनाने वाले अणु दूर्लभ है। पृथ्वी पर पहले डीएनए के अणु के निर्माण के लिये करोड़ो वर्ष लगे। संभवतः ये अणु सागर की गहराईयो मे बने। यदि कोई मीलर-उरे के प्रयोग को करोड़ो वर्ष तक सागर मे जारी रखे तो डीएनए के अणु सहज रूप से बनने लगेंगे। प्रथम डीएनए के अणु का निर्माण शायद सागर की गहराईयो मे ज्वालामुखी के मुहानो हुआ होगा क्योंकि ज्वालामुखी के मुहानो की गतिविधीया इन अणुओ के निर्माण के लिये आवश्यक उर्जा देने मे सक्षम है। यह प्रकाश संश्लेषण से के आने से पहले की गतिविधियां है। यह ज्ञात नही है कि डीएनए के अणुओ के अलावा अन्य कार्बन के जटिल अणु स्वयं की प्रतिकृती बना सकते है या नही लेकिन स्वयं की प्रतिकृती बना लेने वाले अणु डीएनए के जैसे ही होंगे।

जीवन के लिये संभवतः द्रव जल, हायड्रोकार्बन रसायन और डीएनए जैसे स्वयं की प्रतिकृती बनाने वाले अणु चाहीये। इन शर्तो का पालन करते हुये ब्रम्हाण्ड मे जीवन की संभावना की मोटे तौर पर गणना की जा सकती है। १९६१ मे कार्नेल विश्वविद्यालय के खगोलशास्त्री फ्रेंक ड्रेक ने सर्वप्रथम ऐसी ही एक गणना की थी। मंदाकिनी आकाशगंगा मे १०० बीलीयन तारे है, इसमे से आप सूर्य के जैसे तारो का अनुमान लगा सकते है, उसके बाद उनमे से ग्रहो वाले तारो का अनुमान लगा सकते है।

ड्रेक का समिकरण बहुत सारे कारको को ध्यान मे रखते हुये आकाशगंगा मे जीवन की गणना करता है। इन कारको मे प्रमूख है

  1. आकाशगंगा मे तारो की जन्मदर
  2. ग्रहो वाले तारो का अंश
  3. तारो पर जीवन की संभावना वाले ग्रहो की संख्या
  4. जीवन उत्पन्न करने वाले वास्तविक ग्रहो का अंश
  5. बुद्धीमान जीवन उत्पन्न करने वाले ग्रहो का अंश
  6. बुद्धिमान सभ्यता द्वारा सम्पर्क रखने की इच्छा और निपुणता का अंश
  7. सभ्यता का अपेक्षित जीवनकाल

उचित आकलन लगाने के बाद और इन सभी प्रायिकताओ का गुणन करने के बाद पता चलता है कि अपनी आकाशगंगा मे ही १०० से १०००० ग्रह ऐसे होगें जिनपर बुद्धीमान जीवन की संभावना है। यदि यह बुद्धीमान जीवन आकाशगंगा मे समान रूप मे वितरित है तब हमारे कुछ सौ प्रकाश वर्ष मे ही बुद्धीमान जीवन वाला ग्रह होना चाहीये। १९७४ मे कार्ल सागन के अनुसार हमारी आकाश गंगा मे ही १० लाख सभ्यताये होना चाहीये। (ड्रेक के समीकरण का उल्लेख कार्ल सागन ने इतनी बार किया है कि इस समिकरण को सागन का समिकरण भी कहा जाता है।)

इन गणनाओ ने सौर मंडल से बाहर जीवन की संभावनाओ की खोज के लिये नये औचित्य दिये है। पृथ्वी बाह्य जीवन पाने ही इन संभावनाओ के कारण विज्ञानीयो अब गंभीर रूप से इन ग्रहो से उत्सर्जीत रेडीयो संकेतो पर ध्यान देना शुरू किया है। आखीर ये बुद्धीमान सभ्यताये भी हमारी तरह टीवी देखती होंगी ही या रेडीयो सुनती ही होंगी !

क्रमश: (अगले भाग मे : बाह्य सभ्यताओ से संपर्क कैसे करे……)

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